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क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार,साथ जुड़ी है पौराणिक कथा

नई दिल्ली – रक्षाबंधन को भाई -बहन के प्रेम का प्रतिक माना जाता है।रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है और उसे अच्छे जीवन का आशीर्वाद देती है, राखी का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन आता है।भाई अपनी बहन को कुछ भेंट देकर, उपहार देकर उसे आशीर्वाद देता है। भाई-बहन के इस प्यार भरे त्यौहार के पीछे कई पौराणिक कथा प्रचलित है। रक्षाबंधन कई दिनों पहले बाजार में खरीदारी की धूम दिखाई देती है।

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पौराणिक कथा की बात करे की वामन अवतार में भगवान विष्णु ने असुरों के राजा बलि से 3 पाँव जमीन मांगी,जिसमे पहले ही पग में उन्होंने धरती नाप ली और दूसरे पग में पूरा आकाश नाप लिया,बलि को पता चल गया की ये भगवान है। उसके बाद बलि ने भगवान को तीसरा पग अपने सिर पर रखने को कहा,सिर पर पाँव रखते ही बलि पाताल लोक में चला गया। भगवान उसको वरदान मांगने को कहा,जिसमे बलि ने भगवान को अपना द्रालपाल बना दिया। उसके बाद देवी लक्ष्मी ने बलि राजा को राखी बाँध भगवान विष्णु को छुड़ा लिया,तब से राखी का त्यौहार मनाया जाता है।

भगवान श्री कृष्ण की उंगली से होने वाले रक्त प्रवाह को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़ कर उनकी उंगली में बांधा था। बहन भाई को होने वाला कष्ट कभी भी सहन नहीं कर सकती। उस पर आया हुआ संकट दूर करने के लिए वह कुछ भी कर सकती है। और देवराज इंद्र बार-बार राक्षसों से परास्त होते रहे। वह हर बार राक्षसों के हाथों देवताओं की हार से निराश हो गए। इसके बाद इन्द्राणी ने कठिन तपस्या की और अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया। यह रक्षासूत्र इन्द्राणी ने देवराज इन्द्र की कलाई पर बांधा। तपोबल से युक्त इस रक्षासूत्र के प्रभाव से देवराज इन्द्र राक्षसों को परास्त करने में सफल हुए। तब से रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हुई।

भाई बहन का ये पावन त्यौहार भारतभर में मनाया जाता है। रक्षाबंधन का यह त्योहार और भी नामों से जाना जाता है, रक्षाबंधन को पश्चिम बंगाल में ‘गुरु महापूर्णिमा’, दक्षिण भारत में ‘नारियल पूर्णिमा’ और नेपाल में इसे ‘जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है।रक्षाबंधन पुरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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